खानदानी हिज़ाबी औरतें
में अपने कमरे में बैठा ज़ाहिद के साथ गप शप कर रहा था. ज़ाहिद मेरे चाचा का बेटा था और हम क्लास फेलोस भी थे और बेस्ट फ्रेंड्स भी. मेरे चाचा यानी उस के वालिद एक आक्सिडेंट में तीन साल पहले इंतिक़ाल कर गए थे और वो अपनी माँ चाची फ़हमीदा और बड़ी बहन नसरीन के साथ इस्लामाबाद में रहता था. अगरचे वो और में आपस में बड़े बे-तकल्लूफ थे लेकिन मैंने उससे कभी ये नही बताया था के में मामी शाहिदा, फूफी खादीजा और फूफी नीलोफर को चोद चुका हूँ. उस दिन मेरी ही किसी बात से उससे शक हो गया के मैंने फूफी खादीजा की चूत मारी है. वो बार बार मुझ से इसी बारे में पूछता रहा. मैंने बात टालने की बहुत कोशिश की मगर तीर कमान से निकल चुका था. जब उस ने मुझे कुछ ज़ियादा ही तंग किया तो में मान गया के मैंने फूफी खादीजा को चोदा है और ये के वो मुझे अब भी अपनी चूत देती हैं.
अपनी दो फुफियों और मामी को चोद लेने से मुझ पर ज़िंदगी की बहुत सी हक़ीक़त तो खुल ही चुकी थीं मगर अब इस में कोई शक ही नही रहा था के हम सब ने दुनिया की दिखाने के लिये अपने चेहरों पर नक़ाब पहन रखे हैं. मै अपने आप को भी ऐसे ही लोगों में शामिल समझता हूँ. हम सब शायद अपने आप से भी झूठ बोल बोल कर अपनी असल शख्सियत छुपाते हैं. इस का मतलब ये है के हर इंसान की दो शख्सियत हैं. एक उस की असल शख्सियत है और एक वो जो दुनिया को दिखाने के लिये है.
"अमजद यार तुम बहुत खुश-क़िस्मत हो जो फूफी खादीजा की चूत मार ली. उनकी तो बहुत मोटी और ज़बरदस्त फुद्दी हो गी?" ज़ाहिद राल टपकाते हुए बोला. एक लम्हे में वो सब अदब आदाब भूल गया और अपनी सग़ी फूफी की फुद्दी का ज़िकर यों करने लगा जैसे किसी गश्ती औरत का किया जाता है. मुझे ये समझने में देर नही लगी वो भी फूफी खादीजा पर गरम था.
“हाँ इस में तो कोई शक नही.” मैंने दिल ही दिल में खुश होते हुए कहा.
“अच्छा ये तो बताओ के फूफी खादीजा तुम्हे अपनी फुद्दी देने पर राज़ी कैसे होन?” उस ने पूछा.
“बस यार मैंने एक जादू पढ़ कर फूँका तो वो मान गईं.” मैंने हंस कर कहा. मै उससे नही बताना चाहता था के में फूफी खादीजा को चोदने में कैसे कामयाब हुआ था.
“फिर भी आख़िर हुआ किया?”
“छोड़ो यार लंबी कहानी है फिर कभी बताऊं गा. याद रखने वाली बात बस यही है के शादी शुदा औरतों की ज़िंदगी में कोई लुत्फ़ और अड्वेंचर नही होता. अगर उन्हे सही तरीके से फँसाया जाए और उन्हे यक़ीन हो के उनका राज़ राज़ ही रहे गा तो 100 में से 99 औरतें चूत मरवा लेतीं हैं. इस मामले में फूफी और बाहर की किसी औरत में कोई ख़ास फ़र्क़ नही. हाँ ये ज़रूर है के अपनी फूफी को फँसाना ज़रा ज़ियादा मुश्किल काम है.” मैंने उससे बताया.
“में भी तुम्हारे सामने अपना एक बहुत बड़ा राज़ खोलना चाहता हूँ.” वो मेरी बात सुन कर बोला.
“वो किया?”
"में भी अपनी अम्मी को चोद रहा हूँ." उस ने जैसे मेरे सर पर बम फाड़ दिया.
"तुम ने चाची फ़हमीदा को चोदा है यानी अपनी माँ को." मैंने हैरत-ज़डा हो कर कहा.
“हाँ अम्मी को में पिछल सात आठ महीनो से चोद रहा हूँ.” उस ने बताया.
ज़ाहिद को अच्छी तरह जानने के बावजूद मुझे बिल्कुल ईलम नही था के वो अपनी माँ यानी चाची फ़हमीदा के साथ इन्सेस्ट कर रहा था. मै तो ये भी नही जानता था के वो मेरी तरह ही उन औरतों का शौक़ीन था जिन से उस का खूनी रिश्ता था और जो ज़रा बड़ी उमर की और सेहतमंद और मोटी ताज़ी थीं . इन्सेस्ट शायद हमारे खून में थी और यही वजह थी के ज़ाहिद अपनी माँ की चूत ले रहा था.
"यार ज़ाहिद चाची फ़हमीदा भी तो बड़े मज़बूत और तगड़े बदन वाली हैं. तुम कम खुश-नसीब नही हो जो उन्हे चोद रहे हो. कमाल कर दिया तुम ने." में खुद भी एक अरसे से चाची फ़हमीदा को चोदना चाहता था और अब जब ज़ाहिद ने उनके बारे में मुझे ये बात बताई तो मैंने भी उनके लिये अपने नंगे जज़्बात का इज़हार कर दिया.
मुझे गुमान गुज़रा के शायद वो फूफी खादीजा से मेरे ता’अलूक़ का सुन कर हसद में झूठ बोल रहा है.
“लेकिन ये सब हुआ कैसे?” मैंने कहा.
”एक दिन बाजी नसरीन खाला हामीदा के हाँ गई हुई थीं और में और अम्मी घर में अकेले थे. दोपहर के वक़्त मैंने एक ब्लू फिल्म देखी और अम्मी से कुछ बात करने उनके कमरे में आया. अम्मी सो रही थीं और उनके मम्मे उनकी क़मीज़ के खुले हुए गले में से नज़र आ रहे थे. तुम ने देखा हो गा के वो हमेशा काफ़ी खुले गले की क़मीज़ पहनती हैं. मै उनके मोटे मम्मे देख कर खुद पर क़ाबू नही रख सका और उनके मम्मों पर हाथ फेरने लगा. मेरा हाथ उनके मम्मों को लगा तो वो जाग गईं. पहले तो बहुत नाराज़ हुईं और मुझे बहुत डांटा और बुरा भला कहा. पहले तो में डर गया लेकिन फिर में उन से खुल कर बात की. मै उनकी एक आध पुरानी हरकत से भी वाक़िफ़ था. थोड़ी सी कोशिश से वो मान गईं और मैंने उन्हे चोद लिया." उस ने थोड़ी सी शर्मिन्दगी से कहा.
”इस में शर्मिंदा होने वाली किया बात है ज़ाहिद. अगर चाची फ़हमीदा मेरी माँ होतीं तो में भी उन्हे चोदने से अपने आप को रोक ना सकता. और फिर चाची फ़हमीदा की चूत को एक जवान लंड भी तो मिल गया है." चाची फ़हमीदा के सेहतमंद मम्मों और चूतड़ों का सोच के मेरे मुँह में पानी भर आया.
“हाँ ये तो ठीक है. अब अम्मी को कम-आज़-कम घर से बाहर कुछ करने की ज़रूरत नही है." उसने कहा.
"फिर ये भी देखो के तुम और चाची फ़हमीदा बच्चे तो नही हो. तुम दोनो ने अपनी मर्ज़ी से सेक्स किया तुम ने उनके गले पर च्छुरी तो नही रखी थी ना. वैसे बुरा ना मानना चाची फ़हमीदा हैं भी चोदने के क़ाबिल." में उस का दिल बढ़ाते हुए बोला.
"नही में बुरा क्यों मानों गा. मै तो तुम्हे खुद बता रहा हूँ के मैंने अम्मी की फुद्दी मारी है.”
उस ने कहा.
“तभी तो में तुम्हे भी खुश-क़िस्मत कह रहा हूँ.” मैंने जवाब दिया.
“अब ये ना कहना के तुम भी अम्मी को चोदना चाहते हो क्योंके अगर ऐसा हो तो में बदले में किसे चोदुंगा. तुम्हारी तो ना माँ है ना बहन." मेरी बात सुन कर वो ज़रा पूर-सकूँ होते हुए बोला.
उस की ये बात सुन कर मेरे कान खड़े हो गए.
"यार चाची फ़हमीदा की चूत लेने के लिये तो में कुछ भी कर सकता हूँ." मैंने उससे गौर से देखते हुए बे-बाकी से कहा.
”सीरियस्ली अमजद अगर तुम्हे अम्मी को चोदने का मोक़ा मिले तो किया करो गे. किया इस में कुछ मेरा फायदा भी हो सकता है?" उस ने बड़ी संजीदगी से सवाल किया.
में समझ गया के बात किस तरफ जा रही है और ये के चाची फ़हमीदा को चोदने के बारे में वो झूठ नही बोल रहा वरना मुझे उनकी चूत मारने की ऑफर कैसे करता. उस की बात का मतलब साफ़ था के अगर वो फूफी खादीजा को चोद सके तो मुझे चाची फ़हमीदा की चूत लेने दे गा क्योंके बिला-वजा तो वो अपनी माँ को मुझ से नही चुदवा सकता था. ज़ाहिर है के वो खुद फूफी खादीजा पर हाथ डालते हुए घबरा रहा था. अगर में उस की मदद करता तो शायद फूफी खादीजा उससे चूत देने पर तय्यार हो जातीं. इस मदद के बदले में वो मुझे चाची फ़हमीदा को चोदने देता. हरामी ने लंबा ही खेल सोच रखा था.
मुझे गुस्सा तो आया के कोई और फूफी खादीजा की मोटी चूत में लंड डाल कर उन्हे चोदे क्योंके बहरहाल वो मेरी सग़ी फूफी थीं और मुझे उन से बड़ी मुहब्बत भी थी. मै इन्सेस्ट का शौक़ीन था लेकिन सिरफ़ अपनी हद तक. ये मेरी बर्दाश्त से बाहर था के मेरे खानदान की औरतों को कोई और चोदे चाहे वो मेरा कज़िन ही क्यों ना हो. लेकिन मैंने ज़ाहिद के सामने ये कबूल कर के के में फूफी खादीजा की चूत मार चुका हूँ अपनी पोज़िशन बहुत खराब कर ली थी.
में ज़ाहिद को बड़ी अच्छी तरह जानता था. वो बहुत कीना-परवर और छुप कर वार करने वाला इंसान था. अगरचे उस ने भी मुझे ये बताया था के वो अपनी माँ को चोद रहा है मगर में किसी सबूत के बगैर इस बात को उस के खिलाफ इस्तेमाल नही कर सकता था. कोई भी मेरा यक़ीन ना करता. लेकिन अगर वो फूफी खादीजा और मेरे बारे में चाची फ़हमीदा को बता देता तो फिर खानदान का हर फर्द इस मामले से वाक़िफ़ हो जाता. वो बड़ी मुँह-फॅट, बद-तमीज़ और लड़ाका औरत थीं और घर घर जा कर अपनी सुसराल का बुरा कहना हमेशा से उका पसंदीदा काम रहा था. चाची फ़हमीदा और फुफियों में अच्छी ख़ासी दुश्मनी भी थी और अगर चाची फ़हमीदा को फूफी खादीजा का पता चलता तो वो अपनी नंद को रुसवा करने में कोई कसर ना छोड़तीं. उन्हे ऐसा करने के लिये किसी सबूत की भी ज़रूरत नही थी. फिर इस मसले पर सारे खानदान में बातें शुरू हो जातीं और मेरा जो हश्र होता वो में सोच सकता था. मै और फूफी खादीजा आख़िर किस किस के सामने अपनी सफाई पेश करते. इन हालात में में ज़ाहिद को नाराज़ करने का ख़तरा मोल नही ले सकता था.
"कोई प्लान बनाते हैं." मैंने अपनी परैशानी उस से छुपाने की कोशिश करती हुए कहा.
“देख लो अमजद मेरे साथ दो नम्बरी ना करना. मै तुम्हे अकेले अकेले फूफी खादीजा के साथ मज़े नही करने दूँ गा.” उस के लहजे में धमकी पोशीदा थी.
“नही यार ज़ाहिद ऐसी कोई बात नही. तुम अगर फूफी खादीजा की चूत मारो तो भला मुझे किया ऐतराज़ हो सकता है. किया वो तुम्हारी फूफी नही हैं?” खौफ की एक लहर मेरी रीढ़ की हड्डी में दौड़ गई. मेरा अंदाज़ा फॉरन ही सही साबित हो गया था. वो मुझे ब्लॅकमेल करना चाहता था. गुस्से और नफ़रत ने मेरे दिल-ओ-दिमाग को अपनी लपेट में ले लिया. मेरा ज़हन तेज़ी से काम कर रहा था लेकिन मुझे कुछ समझ नही आ रही थी. जब फूफी खादीजा को उस कुत्ते के बच्चे से बचाने का कोई रास्ता नज़र नही आया तो मैंने अपने आप को तस्सली देने के लिये सोचा के फूफी खादीजा ज़ाहिद की भी तो सग़ी फूफी हैं और अगर वो उन्हे चोद लेता तो यक़ीनन मेरे राज़ को कभी फ़ाश नही कर सकता था. अगर वो ऐसा करता तो खुद भी फँसता.
"अमजद तुम ने फूफी खादीजा को तो चोद लिया मगर किया कभी दूसरी फुफियों के बारे में भी सोचा है. फूफी शहनाज़ तो यहीं पिंडी में रहती हैं किया हम उन्हे राज़ी नही कर सकते?" उस ने पूछा.
"यार बात ये है के बाक़ी फुफियों से तो मुझे बहुत डर लगता है. उन्हे चोदने के बारे में तो में सोच भी नही सकता. वो तो सारी ही गुस्से-नाक हैं जान से मार दें गी. फूफी शहनाज़ अलबता ऐसी नही हैं. अगर मुझे उनकी चूत मारने का मोक़ा मिले तो में ज़रूर मारूं गा. वो भी बड़ी खूबसूरत और जानदार हैं." मैंने कहा.
“हाँ यार हमारी फूपियाँ गुस्से वाली तो ज़रूर हैं मगर हैं बड़ा मजेदार माल. फूफी खादीजा ही की तरह लंड पर बिठाने वाले मोटे मोटे फुद्दे हैं उनके. रह गईं फूफी शहनाज़ तो उनकी फुद्दी लेने में भी बड़ा मज़ा आये गा. मै इसी लिये तो पूछ रहा हूँ.” उस ने मुस्कुरा कर कहा.
फूफी शहनाज़ हमारी चार फुफियों में सब से छोटी थीं और पिंडी ही में उनकी शादी हुई थी. उनके दो बच्चे थे और वो भी बड़ी ज़ोरदार औरत थीं . उमर कोई 36 साल थी और बाक़ी सारी फुफियों की तरह वो भी निहायत मोटे मोटे मम्मों और चूतड़ों की मालिक थीं . सग़ी बहन होने की वजह से हमारी बाक़ी तीनो फुफियों से उनकी शकल भी मिलती थी और अगरचे वो उन से कुछ मुख्तलीफ़ भी थीं और कम खूबसूरत भी मगर फिर भी उनका शुमार खुश-शकल औरतों में किया जा सकता था. उनका क़द दूसरी फुफियों के मुक़ाबले में थोड़ा छोटा था मगर बदन उन्ही की तरह दूधिया गोरा, साफ़ शफ्फफ और गोश्त से भरा हुआ था. वो भी अपने बदन के हर सुराख में लंड लेने और चोदे जाने के क़ाबिल थीं .
“लेकिन हम फूफी शहनाज़ को कैसे राज़ी कर सकते हैं?” में बोला.
"फूफी खादीजा इस सिलसिले में हमारी मदद कर सकती हैं क्योंके वो और फूफी शहनाज़ एक दूसरे की राज़दार हैं और हम से फुद्दी मरवाने का राज़ भी अपने तक ही रक्खें गी. फिर फूफी खादीजा को हम से फुद्दी मरवाते देख कर उन्हे भी होसला हो जाए गा." उसने सर हिला कर बड़े पाते की बात कही.
“तुम्हारी बात समझ में तो आती है.” में बोला.
"कियों ना हम दोनो फुफियों को मिल कर चोदें." ज़ाहिद ने कहा. उस की आँखों में चमक सी आ गई थी.
“ये बहुत मुश्किल काम है. वो दोनो कहाँ राज़ी हूँ गी.” मैंने जवाब दिया.
"यार अमजद अगर ऐसा हो जाए तो मेरा वादा है के तुम जब चाहो अम्मी को चोद सकते हो. मै इस मामले में तुम्हारी पूरी मदद करूँ गा. अम्मी इनकार नही कर सकतीं मुझ से जो चुदवा रही हैं." उस ने खुश होते हुए कहा.
फिर हम दोनो ने एक प्लान बना लिया. इस प्लान पर अमल करना मेरी मजबूरी थी क्योंके अगर में फूफी खादीजा से इस सिलसिले में बात करता तो वो बहुत नाराज़ होतीं के मैंने ज़ाहिद को उनके बारे में क्यों बताया.
अगली बार जब फूफी खादीजा पिंडी मेरे घर आईं तो एक दिन ज़ाहिद प्लान के मुताबिक़ मेरे कमरे में आईं उस वक़्त घुस आया जब में फूफी खादीजा की क़मीज़ के ऊपर से उनके मम्मे मसल रहा था और वो हल्का हल्का कराह रही थीं . ज़ाहिद को देख कर उनका रंग अर गया और उन्होने फॉरन मुझ से दूर हट कर अपने उभरे हुए मम्मों पर दुपट्टा डाल लिया. ज़ाहिद ने थोड़ा सा गुस्से में आने की अदाकारी की और कमरे से निकल गया.
"अमजद उससे रोक कर बात करो अगर उस ने अपनी माँ को बता दिया तो मुसीबत आ जायेगी." फूफी खादीजा ने काँपते हुए लहजे में कहा.
में ड्रॉयिंग रूम में आ गया और ज़ाहिद से तेज़ आवाज़ में बात करने लगा.
"में इस बे-शर्मी के बारे में फ़ूपा सलीम और सब को बताऊं गा." उस ने कहा.
में उससे समझने लगा. कुछ देर बाद फूफी खादीजा भी वहाँ आ गईं और ज़ाहिद को मनाने लगीं. वो सख़्त शर्मिंदा नज़र आ रही थीं और उन से ठीक तरह बात भी नही हो पा रही थी.
उस वक़्त मुझे अपने ऊपर शदीद गुस्सा आया के मैंने ज़ाहिद को क्यों ये बता दिया के फूफी खादीजा मुझ से चुदवा रही थीं . मेरी वजह से वो भी अब मुसीबत में फँस गई थीं . लेकिन किया करता में भी तो ज़ाहिद के हाथों ब्लॅकमेल हो रहा था.
"में सिर्फ़ एक शर्त पर मुँह बंद रखूं गा के आप मुझे भी फुद्दी दें. आख़िर में भी तो अमजद की तरह आप का भतीजा हूँ. मुझ में किया कमी है." ज़ाहिद ने फूफी खादीजा से कहा.
उन्होने मेरी तरफ देखा.
"मुझे इसी बात का डर था." वो बोलीं.
"फूफी खादीजा आप दो लंड ले लें किया फ़र्क़ पड़ता है आप को ज़ियादा मज़ा आए गा." ज़ाहिद ने अचानक उनके एक मम्मे को हाथ में पकड़ कर दबाते हुए कहा. फूफी खादीजा फॉरन पीछे हट गईं और अपने मम्मों पर दुपट्टे को ठीक करने लगीं. उस की बात सुन कर वो और ज़ियादा शर्मिंदा नज़र आ रही थीं .
"एक शर्त और भी है और वो ये के आप फूफी शहनाज़ को भी यहाँ इसी काम के लिये बुलाएं गी." ज़ाहिद ने फिर बात छेड़ी.
फूफी खादीजा की आँखें हैरत से फॅट गईं और चेहरा गुस्से से तमतमा उठा लेकिन मामले की नज़ाकत का एहसास कर के उन्होने अपना गुस्सा दबा लिया.
"में शहनाज़ को ये करने के लिये कैसे कह सकती हूँ. तुम्हारा दिमाग तो खराब नही हो गया." उन्होने कहा.
"अगर फूफी शहनाज़ यहाँ हूँ और आप को फुद्दी मरवाते देखें तो वो भी इस काम पर राज़ी हो जायें गी और जब आप दोनो इस काम में शामिल हूँ गी तो कोई मसला नही होगा." ज़ाहिद ने अब खुल कर बात की.
“वो किया सोचे गी के में उस से किस क़िसम की हरकत करवा रही हूँ. वो कभी भी नही माने गी.” उनका गुस्सा अब कम हो गया था.
“फूफी शहनाज़ ज़रूर मान जायेंगी बस आप इस में हमारी मदद करें.” ज़ाहिद ने जवाब दिया.
“ये तो अजीब मुश्किल है. तुम मेरी और अमजद की बात में शहनाज़ को क्यों घसीट रहे हो?” फूफी खादीजा ने उस की तरफ देखते हुए कहा.
“इसी में सब का फायदा है फूफी खादीजा. आप ने ये काम कर दिया तो सारे मामलात उसी तरह चलते रहें गे जैसे चल रहे हैं.दूसरी सूरत में……..” ज़ाहिद ने धमकी-आमीज़ लहजे में कहा.
फूफी खादीजा सोच में पड़ गईं. मैंने सर के हल्के से इशारे से उन्हे मान जाने को कहा.
"चलो देखते हैं लेकिन बेटे तुम किसी से कोई बात मत करना." उन्होने एक बार फिर ज़ाहिद को ताकीद की.
“इस बात का वादा में तब करूँ गा फूफी खादीजा जब आप मुझे अपनी फुद्दी मारने दें गी.” ज़ाहिद ने दो-टोक लहजे में कहा.
कुछ देर बाद वो चला गया तो फूफी खादीजा ने मुझ से कहा:
"अब किया हो गा ये हरामी ज़ाहिद तो मुझे भी चोदना चाहता है और शहनाज़ को भी. मुझे तो डर है के ये कहीं हमारी बात अपनी कुतिया माँ को ना बता दे. वो तो मुझे बर्बाद कर दे गी."
"फूफी खादीजा आप किया बात कर रही हैं ज़ाहिद तो चाची फ़हमीदा को भी चोद रहा है." मैंने उन्हे ज़ाहिद के राज़ से आगाह कर दिया.
इस दफ़ा फूफी खादीजा के चेहरे पर हैरत के साथ साथ हल्की सी खुशी भी नज़र आई.
“तुम ने अपनी आँखों से ये होते देखा है?” उन्होने पूछा.
“नही फूफी खादीजा लेकिन मुझे ज़ाहिद ने खुद ये बात बताई है. उसे तो इस पर भी कोई ऐतराज़ नही है के में चाची फ़हमीदा को चोद लूं.” मैंने उन्हे बताया.
“ये हमारे खानदान को किया हो गया है? में तो कभी सोच भी नही सकती थी के घर की चार-दीवारी के पीछे लोग कैसे कैसे खेल खेलते हैं.” उन्होने कहा.
“बस कुछ ऐसी ही बात है फूफी खादीजा.” मैंने जवाब दिया.
“लेकिन अमजद तुम ये ना भूलो के मेरी और तुम्हारी बात जब इतने सारे लोगों को पता चल जायेगी तो किया हो गा? ऐसी सूरत में कोई भी राज़ ज़ियादा देर तक राज़ नही रह सकता.” उनका अंदेशा बिल्कुल ठीक था मगर अब किया हो सकता था.
“आप सही कह रही हैं लेकिन जिस जिस को हमारे राज़ का ईलम हो गा वो खुद भी तो यही कुछ कर रहा होगा. वो खुद भी तो बराबर का मुजरिम होगा. अपने आप को महफूज़ रखने के लिये वो हमारे राज़ को भी राज़ रखने पर मजबूर होगा.” मैंने कहा.
"फ़हमीदा बड़ी नायक परवीन बनती है. अमजद एक तो तुम किसी तरह उससे ये बता दो के में अपने बेटे के साथ उस की हरकतों से वाक़िफ़ हूँ और दूसरे कुछ करो ना करो मेरे सामने फ़हमीदा की चूत ज़रूर मारना.” उन्होने रिवायती नंद की तरह चाची फ़हमीदा को नीचा दिखाने का सोचा था. मुझे ये सुन कर खुशी भी हुई क्योंके बात मेरे ही फायदे की थी.
“वादा रहा फूफी खादीजा में पूरी कोशिश करूँ गा.” मैंने उन्हे खुश करने के लिये कहा.
“मुझे नही पता के ये कैसे हो गा लेकिन अगर ये कुत्ता ज़ाहिद मुझे चोदता है तो तुम उस की कंजड़ी माँ फ़हमीदा को ज़रूर चोदना. ये कल का क्छोकरा मेरी चूत ले तो अपनी माँ को भी तो तुम से चूत मरवाते देखे ना." वो फिर गुस्से में आ गई थीं . मैंने उन्हे इतमीनान दिलाया के बिल्कुल ऐसा ही होगा. फूफी खादीजा चाची फ़हमीदा से ता’अलुक़ात खराब होने की वजह से ज़ाहिद को भी सख़्त ना-पसंद करती थीं .
वो फिर किसी सोच में खो गईं.
"तुम भी शहनाज़ को चोदो गे किया?" चंद लम्हो बाद उन्होने अचानक सवाल किया.
"अगर आप की फुद्दी जैसी दो फुदियाँ एक वक़्त में चोदने को मिल जाएं तो और किया चाहिये." मैंने हंस कर जवाब दिया.
“लेकिन किया एक ही वक़्त में मुझे तुम दोनो को चूत देनी पड़े गी?”
“जब ज़ाहिद आप को और फूफी शहनाज़ को चोदेगा तो में देखता तो नही रहूं गा.” मैंने कहा.
“तुम तो डिसचार्ज होने में बहुत टाइम लेते हो और दो औरतों को संभाल लो गे ये खनज़ीर ज़ाहिद कैसे दो दो औरतें को चोदेगा?”
“पता नही फूफी खादीजा वो खलास होने में कितना टाइम लेता है मगर ज़ाहिर है जब आप दोनो उस के सामने हूँ गी तो वो सिरफ़ एक की चूत तो नही मारे गा फूफी शहनाज़ को भी चोदेगा.” मैंने जवाब दिया.
“हाय हाय? मुझे तो ये सोच कर ही घिन आती है के ये कुत्ता गाँडू मेरे अंदर अपना लौड़ा डाले गा.” उन्होने सीने पर हाथ रख लिया.
“में तो फूफी शहनाज़ को इस लिये चोदना चाहता हूँ के वो आप की तरह हैं.” मैंने कहा.
"खैर शहनाज़ बिल्कुल तो मेरी तरह नही है थोड़ी बहुत ही मिलती है. अब जब तुम उससे चोद लो गे तो पता चल जाए गा." उन्होने फूफी शहनाज़ को खुद से कम तर साबित करने की कोशिश की.
“वो मान जायेंगी?” मैंने पूछा.
“शहनाज़ को में संभाल लूं गी. उस का एक राज़ है मेरे पास. बस तुम उस वक़्त यही कहना के तुम भी इस राज़ से वाक़िफ़ हो.” उन्होने मुझे बताया.
मैंने उन से ये नही पूछा के वो किया राज़ था.
"चलें फूफी खादीजा कम ही सही मगर फूफी शहनाज़ हैं तो आप की बहन. उनकी चूत में भी काफ़ी मज़ा होगा.” मैंने कहा. वो मुस्कुरा दीं लेकिन कोई जवाब नही दिया.
घर में ये सब करने में ख़तरा था इस लिये मैंने हमेशा की तरह पिंडी से बाहर जाने का फ़ैसला किया. प्लान ये था के में, ज़ाहिद, फूफी खादीजा और फूफी शहनाज़ पिक्निक के बहाने नतियागली चलें और जो कुछ भी हो वहाँ पर ही हो. हमारा घराना आज़ाद ख़याल और मॉडर्न था इस लिये घर से बाहर जाने में कोई मसला नही था. हम पहले भी कई दफ़ा मिल कर लाहौर और अयूबीया जा चुके थे.
फूफी खादीजा ने फूफी शहनाज़ से फोन पर बात की तो वो अपने दोनो बच्चों को भी साथ ले जाने का कहने लगीं. फूफी खादीजा ने कहा के अमजद वहाँ अपने किसी दोस्त के बाप की फोत्गी पर ताज़ियत करने जा रहा है. ज़ाहिद भी उस के साथ है. मै अकेली यहाँ किया करूँ गी इस लिये इनके साथ ही जा रही हूँ. मैंने सोचा के तुम्हे भी साथ ले लेतीं हूँ. ये दोनो वहाँ चले जायें गे और हम इतनी देर गाड़ी में ही बैठे गे. बच्चे तंग हो जायेंगे. इस लिये उन्हे साथ ले कर जाना मुनासिब नही होगा. फूफी शहनाज़ बड़ी मुश्किल से हमारे साथ अकेले जाने पर राज़ी हुईं.
ये काम होते ही मैंने फोन पर नतियागली के एक महँगे होटेल में डबल बेड वाला कमरा बुक करवा लिया. दो दिन बाद में, ज़ाहिद और हमारी दोनो फूपियाँ कार में बैठ कर तक्शिला के रास्ते नतियागली रवाना हुए.
फूफी खादीजा और फूफी शहनाज़ को एक साथ बैठे देख कर मेरा लंड खड़ा हो गया. फूफी शहनाज़ के मम्मे भी फूफी खादीजा जैसे ही थे यानी खूब मोटे और सूजे हुए. उनकी हल्की नीली क़मीज़ के अंदर से उनका सफ़ेद ब्रा साफ़ नज़र आ रहा था. पता नही बहुत औरतों को ये एहसास क्यों नही होता के उनका ब्रा क़मीज़ में से नज़र आ रहा है. मैंने अंदाज़ा लगाया के फूफी शहनाज़ भी फूफी खादीजा के नंबर का ब्रा इस्तेमाल करती हूँ गी. मुझे पता था के फूफी शहनाज़ की फुद्दी मार कर भी उतना ही मज़ा आए गा जितना फूफी खादीजा और फूफी नीलोफर की फुदियाँ मारते हुए आता था. इन्सेस्ट में तो मेरे लिये वैसे भी बड़ा मज़ा था और आज तो हम बहुत ही अजीब-ओ-ग़रीब तजर्बा करने जा रहे थे. खुशी के आलम में मुझे ज़ाहिद की ब्लॅकमेलिंग भी याद ना रही.
नतियागली जाते हुए मैंने जान बूझ कर कार आहिस्ता ड्राइव की और हम शाम 4 बजे के क़रीब नतियागली पुहँचे. फूफी शहनाज़ को मैंने बताया के लेट हो जाने की वजह से मजबूरन हमें रात यहाँ रुकना पड़े गा. उन्होने कोई ऐतराज़ नही किया. शायद घर के शोर शराबे से दूर वो भी एंजाय कर रही थीं .
नतियागली में होटेल कम हैं और गर्मियों में वहाँ बहुत ज़ियादा रश होता है. जिस होटेल में मैंने कमरा बुक करवया था वो एक अलग थलग सी जगह पर वक़ीया था और उस के कमरे एक दूसरे से थोड़े फासली पर थे. मै होटेल के अंदर गया और फिर बाहर आ कर दोनो फुफियों को बताया के सिर्फ़ एक ही कमरा मिला है हमें गुज़ारा करना पड़े गा. फूफी खादीजा ने कहा कोई बात नही ज़मीन पर मॅट्रेसस डलवा लें गे. फिर हम चारों कमरे में आ गए.
कमरे में आ कर फूफी शहनाज़ ने कहा के वो तो अपने साथ रात को सोने के कपड़े नही लाईन क्योंके उनका ख़याल था के हम आज ही वापस चले जायेंगे. फूफी खादीजा चूँके हमारे प्रोग्राम से वाक़िफ़ थीं इस लिये अपने साथ कपड़ों के दो तीन जोड़े ले कर आई थीं . उन्होने फूफी शहनाज़ से कहा के वो लाहोर से आईं तो एरपोर्ट से घर आते हुए उनका एक बैग गाड़ी ही में पडा रह गया था उस में कपड़े हैं. मै उनका बैग कमरे में ले आया और उन्होने अपना एक जोड़ा फूफी शहनाज़ को दे दिया. उन दोनो ने कपड़े बदल लिये. में और ज़ाहिद अलबता कुछ भी ले कर नही आए थे.
हम बहुत देर तक अपनी दोनो फुफियों से बातें करते रहे. रात को बातें करते करते अचानक ज़ाहिद ने कहा:
"में भी कपड़े नही लाया अब सोते वक़्त किया पहनूं गा."
"कोई बात नही ज़ाहिद चादर लपेट कर सो जाना यहाँ बाहर का तो कोई नही है." मैंने कहा.
"ज़ाहिद बेटा रात ही तो गुज़ारनी है सब घर वाले ही हैं यहाँ." फूफी शहनाज़ हंस कर बोलीं.
ज़ाहिद बाथरूम गया और बेड की चादर कमर के गिर्द लपेट कर आ गया. ज़ाहिद बचपन से ही बहुत ज़ियादा मोटा था और अब भी उस का यही हाल था. उस का पेट काफ़ी बाहर निकला हुआ था और अपने लंबे क़द की वजह से वो पूरा जिन नज़र आता था. वो ऊपर से नंगा था और चादर में से उस के बैठे हुए लंड का उभार नज़र आ रहा था जिस से अंदाज़ा लगाया जा सकता था के उस का लंड बहुत मोटा और लंबा है. मैंने भी यही किया और होटेल की चादरों में से एक चादर कमर पर बाँध ली.
ज़ाहिद आ कर सीधा फूफी खादीजा के साथ बेड पर बैठ गया. मै समझ गया के वो पहले फूफी खादीजा की चूत मारना चाहता है. फूफी खादीजा के चेहरे पर हल्की सी परैशानी की झलक थी. शायद वो भी जानती थीं के अब खेल शुरू होने वाला था और ज़ाहिद उनकी चूत लेने को तय्यार था.
अब हमें किसी तरह फूफी शहनाज़ को अपने साथ शामिल करना था. बातों के दोरान ज़ाहिद ने बड़ी बे-तकल्लूफ़ी से फूफी खादीजा की रान पर अपना हाथ रख दिया. फूफी खादीजा की मोटी रान पर उस का हाथ आया तो मैंने उस की तरफ देखा. उस का लंड अब खड़ा हो गया था और चादर के ऊपर 6/7 इंच की कोई मोटी सी डंडा-नुमा चीज़ नज़र आने लगी थी. फूफी खादीजा ने उस का लंड देखा लेकिन अपने आप को क़ाबू में रखा और कुछ नही बोलीं.
कुछ ही देर में फूफी शहनाज़ की नज़र ज़ाहिद के अकड़े हुए लंड पर पड़ गई. पहले तो वो हैरान रह गईं और उनके मुँह से एक लफ्ज़ भी नही निकला. फिर उन्होने फूफी खादीजा की तरफ देखा जो खामोश बैठी थीं और ज़ाहिद का हाथ अपनी रान से हटाने की कोई कोशिश नही कर रही थीं .
"ज़ाहिद ये किया हरकत है तुम अपनी फुफियों के सामने नंगे हो रहे हो तुम्हे हया करनी चाहिये." बिल-आख़िर फूफी शहनाज़ से ना रहा गया.
में जल्दी से उठ कर उस सोफे पर जा बैठा जहाँ फूफी शहनाज़ बैठी हुई थीं और कहा:
"फूफी शहनाज़ आप बहुत सी बातें नही जानतीं. हम आज यहाँ एक ख़ास मक़सद से आये हैं. उस मक़सद को जानने से पहले ज़रूरी है आप को कुछ और बातों का भी ईलम हो. एक तो ये के में फूफी खादीजा को कई महीनों से चोद रहा हूँ और दूसरे ये के ज़ाहिद चाची फ़हमीदा की चूत मार चुका है."
फूफी शहनाज़ को अपने कानो पर यक़ीन नही आया. उनका मुँह हैरत से खुला का खुला रह गया.
"ये किया बकवास कर रहा है बाजी खादीजा. हमारे सामने किस क़िसम की गंदी बातें कर रहा है." उन्होने फूफी खादीजा की तरफ देख कर कहा.
"शहनाज़ चुप रहो इन को शादी से पहले वाले तुम्हारे मसले का पता चल गया है और ये हमारी इज़्ज़त खराब कर के ही छोड़ें गे." फूफी खादीजा ने जवाब दिया.
हैरान होने की अब ज़ाहिद की बारी थी. मुझे तो पता था लेकिन ज़ाहिद के फरिश्तों को भी फूफी शहनाज़ के किसी मसले का ईलम नही था और फूफी खादीजा महज़ उन्हे डरा कर रास्ते पर लाने के लिये ऐसा कह रही थीं . ये समझना मुश्किल नही था के फूफी शहनाज़ के शादी से पहले किसी से ता’अलुक़ात रहे हूँ गे जिन का ईलम फूफी खादीजा को था और वो इस बात को इस्तेमाल कर के उनका मुँह बंद करना चाहती थीं .
“हाँ फूफी शहनाज़ हम सब जानते हैं और अगर आप की वो हरकत किसी को मालूम हो गई तो जो होगा वो आप सोच सकती हैं." मैंने फूफी खादीजा की तरफ मानी-खैीज़ अंदाज़ में देखते हुए अंधैरे में तीर चलाया.
फूफी शहनाज़ बिल्कुल खामोश हो गईं और मुझ से नज़रें चुराने लगीं. वो रोने वाली हो रही थीं . मुझे शक हुआ के शायद फूफी शहनाज़ उस आदमी से चुदवाती रही हूँ गी. तब ही तो इतना परेशां हो गई थीं . उनकी हालत देख कर फूफी खादीजा हल्का सा मुस्कुरा दीं और में सोचने लगा के सग़ी बहनें भी हसद की वजह से एक दूसरे को नीचा दिखाने से बाज़ नही रह सकतीं. फूफी खादीजा एक और वजह से भी फूफी शहनाज़ को हम से चूत मरवाते हुए देखना चाहती थीं और वो ये के चूँके वो खुद अपने भतीजों को फुद्दी दे रही थीं जो बहुत बुरा काम था इस लिये अब वो फूफी शहनाज़ को इस में शामिल कर के अपने आप को अख़लक़ी तौर पर कम तर साबित नही करना चाहती थीं के सिर्फ़ वो ही ऐसा बुरा काम कर रही हैं. वैसे कमाल की बात थी. कुछ अरसे पहले तक फूफी खादीजा मुझे चूत देने से इनकार कर रही थीं और आज अपनी तासकीं के लिये फूफी शहनाज़ को भी चूत मरवाते हुए देखना चाहती थीं .
"फिर अब मुझे किया करना है." कुछ देर बाद फूफी शहनाज़ बड़ी परैशानी से बोलीं. उन्हे समझ आ गई थी के उन्हे हम दोनो को या कम-आज़-कम किसी एक को चूत देने पड़े गी.
"तुम्हे इन की खाहिश पूरी करने ही पड़े गी शहनाज़ यानी इन से चुदवाना पड़े गा और कोई रास्ता नही है. मजबूरी में बहुत कुछ करना पड़ता है. तुम से पहले मेरे साथ भी यही हुआ है." फूफी खादीजा ने झूठ बोला. मैंने उन्हे चोदने के लिए ब्लॅकमेल नही किया था. फूफी शहनाज़ को उनके मुँह से ये अल्फ़ाज़ सुन कर यक़ीनन अजीब लगा होगा.
“बाजी खादीजा आप कैसी बातें कर रही हैं. हम भाई जान को फोन क्यों ना करें?" उनका इशारा डैड की तरफ था. वो अपने गुस्से और हैरत पर क़ाबू पाने की कोशिश कर रही थीं .
"शहनाज़ अक़ल से काम लो. मै ठीक कह रही हूँ. ये बात बाहर निकली तो कहीं की नही रहो गी." फूफी खादीजा ने उन्हे समझाते हुए कहा.
"लेकिन बाजी खादीजा ये तो हमारे बेटों जैसे हैं में इन के साथ ये काम कैसे कर लूं." फूफी शहनाज़ ने बड़ी पीटी हुई रिवायती दलील दी.
"शहनाज़ ये कहाँ से बच्चे हैं ये तो हमें चोदना चाहते हैं. एक तो हम मजबूर हैं दूसरे अगर सच पूछो तो तुम और में कौन सा अपने खाविंदओं से खुश हैं. वो अब हमारी जिस्मानी ज़रूरियात पूरी नही कर सकते. तुम खुद मुझे बता चुकी हो के तुम्हारा खाविंद ज़हूर कितने हफ्तों बाद तुम्हारे पास आता है और वो भी किस बे-दिली के साथ. जो हम कर रहे हैं गलत है मगर ये अपने ही बच्चे हैं कम-आज़-कम बात बाहर तो नही निकलेंगे ना." फूफी खादीजा ने एक दफ़ा फिर उन्हे समझाया.
"लेकिन बाजी खादीजा हम एक दूसरे के सामने कैसे नंगी हूँ गी?" फूफी शहनाज़ ने अपने बड़े बड़े बाहर निकले हुए मम्मों पर दुपट्टा फैलाते हुए कहा.
"छोड़ शहनाज़ ये पुरानी बातें. देख ज़माना कहाँ जा रहा है. हम अगर कुँवें के मैंडक बन कर रहें गे तो किसी का कोई नुक़सान नही सिरफ़ हमारा ही है. हमें कोई मसला नही हो गा बस यहाँ की बात यहीं तक ही रहनी चाहिये. ये दोनो किसी को नही बता सकते. चल थोड़ी देर के लिये सब कुछ भूल जा." फूफी खादीजा बोलीं.
अभी वो ये कह ही रही थीं के मैंने फूफी शहनाज़ का गोरा मुँह चूमा और उनकी क़मीज़ दामन से पकड़ कर उससे उतारने लगा. उनकी क़मीज़ मम्मों तक ऊपर उठ गई और गोरा पेट नज़र आने लगा. उन्होने हाथ से क़मीज़ नीचे की मगर जब मैंने उससे दोबारा पकड़ा तो फूफी शहनाज़ ने फूफी खादीजा की तरफ देखते हुए अपने दोनो हाथ ऊपर उठा दिये और मैंने उनकी क़मीज़ जो उनके मोटे मम्मों पर कसी हुई थी उतार कर उनका ऊपरी बदन नंगा कर दिया.
उनके मम्मे इतने बड़े थे के क़मीज़ खैंच कर उतारते वक़्त साइड से उस की सिलाई थोड़ी सी खुल गई. नीचे उन्होने सफ़ेद रंग का भारी सा ब्रा पहना हुआ था जिस के बीच में एक छोटी सी गुलाबी बो बनी हुई थी. फूफी खादीजा के मम्मों की तरह फूफी शहनाज़ के मम्मे भी आधे से ज़ियादा ब्रा से बाहर ही थे. मै फूफी शहनाज़ के नंगे बदन को देख रहा था के मेरी नज़र फूफी खादीजा पर पड़ी. वो बड़ी अजीब नज़रों से मुझे देख रही थीं . मैंने हाथ बढ़ा कर नाफ़ के क़रीब फूफी शहनाज़ के पेट के नरम गोश्त को पकड़ लिया. फिर मैंने उनके मम्मों पर हाथ फेरा तो उनके मुँह से ऐसी आवाज़ निकली जैसे मम्मे पकड़ने से उन्हे तक़लीफ़ हुई हो.
फूफी शहनाज़ के मम्मे जो अभी तक ब्रा में चुप्पे हुए थे देख कर ज़ाहिद ने फूफी खादीजा की गर्दन में हाथ डाल कर उनको गले से लगा लिया और उनका मुँह चूमने लगा. फूफी खादीजा भी फॉरन उस का साथ देने लगीं और उनका चेहरा सुर्ख हो गया. मुझ से चुदवा कर फूफी खादीजा को चूत देने की शायद आदत भी हो गई थी और मज़ा भी आता था और अब जब उन्हे ज़ाहिद का लंड लेने का मोक़ा मिल रहा था तो वो बहुत जल्दी गरम हो गई थीं .
ज़ाहिद फूफी खादीजा के होंठ चूमते हुए बड़ी बे-दरदी से क़मीज़ के ऊपर से ही उनके मम्मों को ज़ोर ज़ोर से दबा रहा था. वो सी सी की आवाजें निकालने लगीं. फिर उस ने फूफी खादीजा की क़मीज़ उतार दी और उनके ब्रा को खोल कर उनके मोटे मोटे नंगे मम्मों को हाथों में ले कर मसलने लगा. फूफी खादीजा के मुँह से मुसलसल सिसकियाँ निकल रही थीं . उनके भारी और नाज़ुक मम्मे मसले जाने से लाल हो गए थे.
“ज़ाहिद फूफी खादीजा चूत देते हुए बहुत गालियाँ देती हैं. तुम इन्हे चोदते हुए इस के लिये तय्यार रहना.” मैंने कहा. फूफी खादीजा तो कुछ नही बोलीं लेकिन ज़ाहिद और फूफी शहनाज़ दोनो ही मेरी बात सुन कर हैरान हुए.
ज़ाहिद इस के बाद खड़ा हुआ और अपने जिसम के गिर्द लिपटी हुई चादर उतार दी. फूफी खादीजा ने खुद ही नाड़ा खोल कर अपनी शलवार उतार दी. ज़ाहिद का बहुत ही मोटा और लंबा लंड फूफी खादीजा के मुँह के सामने आ गया था. उन्होने बगैर कुछ कहे उस का लंड हाथ में ले लिया और पहले उस के टोपे पर ज़बान फेरी और फिर उससे चूसने लगीं. मैंने उन्हे ये करते देखा तो मेरा खून खोल गया. फूफी खादीजा ने मेरी तरफ देखा और जल्दी से अपनी नज़रें ज़ाहिद के लंड पर मर्कूज़ कर दीं.
मैंने भी फूफी शहनाज़ को खड़ा किया और उनका ब्रा हुक खोले बगैर ही मम्मों के ऊपर से खैंच कर उतार दिया. ब्रा उनके गले में आ गया जो उन्होने खुद उतार दिया. उनके वज़नी मम्मे अचानक ही ब्रा से निकल कर बाहर आ गए जो हू-ब-हू फूफी खादीजा की तरह ही थे. फूफी शहनाज़ के मम्मों की गोलाई, उभार और साइज़ तक़रीबन फूफी खादीजा के मम्मों जैसा ही था. फिर मैंने उनकी शलवार का नाड़ा खोल कर शलवार भी उतार दी और वो बिल्कुल नंगी हो गईं. उनकी चूत पर काले घने बाल नज़र आ राय थे. मैंने अपनी चादर हटा दी और उन्हे अपने साथ चिपटा लिया. उनका नरम गरम बदन बहुत मज़ा दे रहा था. मैंने अपना खड़ा हुआ लंड नीचे कर के फूफी शहनाज़ की नंगी चूत का साथ लगा दिया और उनके लिपस्टिक से लाल होंठ चूसने लगा.
फूफी शहनाज़ मेरा साथ नही दे रही थीं जिस पर मैंने उनकी चूत पर अपना हाथ रखा और उससे आहिस्ता आहिस्ता सहलाने लगा. फूफी शहनाज़ ने अपनी मोटी रानें और चूतर पीछे किये और मेरे हाथ को अपनी चूत से हटाने की कोशिश की. मैंने अपना लंड उनके हाथ में दिया और पीछे से उनके चूतरों को पकड़ कर उनके होठों को चूसता रहा. जब में उनके होंठ चूस रहा था तो वो तेज़ तेज़ साँस ले रही थीं और अपने होठों को मुझ से छुड़ाने की कोशिश कर रही थीं . मैंने ये देख कर पीछे से उनके सर को सख्ती से पकर लिया और इसी तरह उनके होठों को चूमता और चूसता रहा.
फिर मैंने उनके मुँह में अपना मुँह डाला और उनकी ज़बान चूसने लगा. शायद इस से पहले क़िस्सी ने फूफी शहनाज़ को चोदते हुए उनकी ज़बान नही चूसी थी. वो बार बार अपनी ज़बान पीछे खैंच लेतीं जो मेरे मुँह से निकल जाती थी. मैंने उनको कहा के अपनी ज़बान मेरे मुँह में आगे कर के डाले रक्खें ताके में उससे चूस सकूँ. उनके मोटे मम्मे मेरे सीने से लगे हुए थे और मेरा लंड उनके नरम हाथ में था.
कुछ देर फूफी शहनाज़ की ज़बान चूसने के बाद मैंने सोफे पर बैठ कर उन्हे अपनी गोद में बिठा लिया और उनके मम्मे बारी बारी अपने मुँह में डाल कर चूसने लगा. फूफी शहनाज़ चूँके बड़ी चौड़ी चकली औरत थीं और उनके चूतड़ मोटे और गोश्त से भरे हुए थे इस लिये जब वो मेरी गोद में बैठीं तो मेरा लंड उनके चूतड़ों के पीछे की तरफ़ नही पुहँचा बल्के आगे उनकी चूत के साथ लगा रहा. मेरे लंड का टोपा उनकी गरम चूत की गर्मी महसूस कर रहा था. अपने मम्मे चुस्वाते हुए वो खुद भी अब काफ़ी गरम हो चुकी थीं और उनके मुँह से मुसलसल आवाजें निकल रही थीं .
मैंने सर उठा कर देखा तो ज़ाहिद ने बिल्कुल नंगी फूफी खादीजा को बेड पर लिटाया हुआ था और खुद उनके ऊपर लेट कर उनके मम्मों के मोटे निप्पल चूस रहा था. फूफी खादीजा के मोटे और भारी मम्मे उस के मुँह से ज़ोर से बाहर निकल कर उछलते हुए नीचे आते और वो फिर उन्हे हाथ से पकड़ कर मुँह में ले लेता और उन्हे चूसना शुरू कर देता. फूफी खादीजा ज़ाहिद के नीचे लेतीं कसमसा रही थीं और उनकी दांयें वाली मोटी मज़बूत रान और सफ़ेद घुटना नज़र आ रहे थे.
फिर ज़ाहिद उठा और उस ने फूफी खादीजा को उल्टा कर दिया. अब वो अपना लंड उनकी मोटी और चौड़ी गांड़ के ऊपर रख कर रगड़ने लगा. ज़ाहिद बहुत वज़नी था और फूफी खादीजा के ऊपर चढ़ के उस ने अपना सारा वज़न उनके बदन पर डाल रखा था. उस का बड़ा सा लंड उनके मोटे लेकिन नरम चूतरों को बुरी तरह रगड़ रहा था और वो दोनो हाथ अपनी थोड़ी के नीचे रख कर अपने आप को चीखने से रोक रही थीं . फूफी खादीजा के मम्मे उनके बदन और बेड के दरमियन फँसे हुए थे मगर अब भी उनके बड़े बड़े उभार साफ़ नज़र आ रहे थे.
मेरे ज़हन में एक ख़याल आया और मैंने फूफी शहनाज़ को अपनी गोद से उतार कर बेड पर फूफी खादीजा के बराबर लिटा दिया और ज़ाहिद की तरह उनके ऊपर लेट कर उनके मम्मे चूसने लगा. अब हम दोनो कज़िन्स अपनी फुफियों के ऊपर लेते उनके मम्मे चूस रहे थे.
"अब फुद्दी ना चाटें ?" मैंने ज़ाहिद से पूछा.
“हाँ हाँ यार क्यों नही. लेकिन फुफियों के पास जो माल है उससे फुद्दी ना कहो. ये दो मोटे मोटे फुद्दे हैं.” वो बे-शर्मी से बोला. फूफी खादीजा और फूफी शहनाज़ ने एक दूसरे की तरफ देखा लेकिन कुछ कहा नही. दोनो के चेहरे लाल थे मगर फूफी शहनाज़ का हाल ज़ियादा खराब था. ये तजर्बा उनके लिये नया था और फिर वो अपनी बड़ी बहन के सामने चूत दे रही थीं इस लिये पूरी तरह रिलॅक्स्ड नही थीं . मगर मुझे अंदाज़ा हो गया था के उन्होने भी अब मज़ा लेना शुरू कर दिया है.
मैंने फूफी शहनाज़ की चूत पर ज़बान फैरनी शुरू कर दी और ज़ाहिद फूफी खादीजा की चूत चाटने लगा. फूफी खादीजा की चूत तो में काफ़ी अरसे से चाट रहा था लेकिन फूफी शहनाज़ की आज पहली दफ़ा थी. जब में उनकी चूत चाट रहा था तो वो अपनी टाँगों के मसल्स को बार बार खैंच रही थीं और मुँह से ऊऊऊओ ओह आआआः आआआआः की आवाजें निकाल रही थीं . मैंने उन्हे और गरम करने के लिये उनकी रानों को अंदर की तरफ से चूमना शुरू कर दिया. ज़ाहिद भी इसी तरह फूफी खादीजा की फुद्दी चाट रहा था और एक हाथ से उनके मम्मों को पकड़ कर मसल रहा था.
ज़ाहिद फिर उठ कर फूफी खादीजा के मम्मों से थोड़ा नीचे इस तरह बैठ गया के उनके ऊपर ज़ियादा वज़न ना पड़े और अपना लंड उनके मुँह में दे दिया. उन्होने चंद मिनिट तक उसका लंड चूसा लेकिन फिर कहा,
"ज़ाहिद में इस तरह तुम्हारा लौड़ा नही चूस सकती मुझे उठने दो."
ज़ाहिद ने उनके होंठ चूमे और फिर खुद सीधा लेट गया. फूफी खादीजा ने अब उस का लंड मुँह में लिया और चूसने लगीं. मै भी इसी तरह लेट गया और फूफी शहनाज़ फूफी खादीजा की देखा देखी मेरा लंड चूसने लगीं. मैंने नीचे से हाथ लंबा कर के उनके मोटे मोटे मम्मे मसलने शुरू कर दिये.
फूफी खादीजा से लंड चुसवाने के दोरान ज़ाहिद ने फूफी शहनाज़ का नंगा बदन देखा जो मेरा लंड चूस रही थीं और एक हाथ से उनके चूतरों और चूत को सहलाना शुरू कर दिया. मुझे लगा के जैसे ज़ाहिद ने उनकी चूत में उंगली दी है क्योंके उस का हाथ अपनी चूत पर महसूस कर के फूफी शहनाज़ ने मेरे लंड को और ज़ोर से चूसना शुरू कर दिया. मेरा लंड कभी कभार उनके दांतो से भी टकरा जाता लेकिन वो उससे अपने मुँह के बीच में रख कर चूसती रहीं. वो अब बे-क़ाबू हो रही थीं और मेरा लंड अपने अंदर लेना चाहती थीं . उन्होने लंड चूसते चूसते सर उठा कर अजीब सी नज़रों से मेरी तरफ देखा और कहा:
"मैरा मुँह तक गया है."
फूफी खादीजा ने ये देख कर कहा.
"अमजद शहनाज़ सबर नही कर सकती तुम इससे चोदना शुरू करो."
फूफी शहनाज़ कुछ ना बोलीं.
मैंने फूफी शहनाज़ को लिटाया और उनकी खूबसूरत मोटी चूत के अंदर लंड डाल दिया. फूफी खादीजा के मुक़ाबले में क़द छोटा होने के बावजूद फूफी शहनाज़ ने मेरे लंड को फूफी खादीजा से ज़ियादा होसले और आराम से अपनी चूत में लिया. उनकी चूत काफ़ी गीली और गरम थी और मेरा लंड स्लिप होता हुआ टट्टों तक उस के अंदर चला गया. मैंने घस्से मारने शुरू किये और फूफी शहनाज़ के कंधे पकड़ कर उन्हे चोदने लगा.
ज़ाहिद ने भी फूफी खादीजा की टांगें अपने कंधों पर रखीं और बड़े ज़ोर से अपना लंड उनकी चूत के अंदर घुसेड़ दिया. फूफी खादीजा के मुँह से हल्की सी चीख निकली और और उन्होने बेड से उठने की कोशिश की. ज़ाहिद रुका नही और उनकी चूत में घस्से मारता रहा.
“आराम से चोदो हरामजादे. किया मेरी चूत फाड़ो गे?” फूफी खादीजा ने अपनी आदत के मुताबिक़ गालियाँ देनी शुरू कर दीं.
“फूफी खादीजा आप की फुद्दी बड़ी मज़बूत है दस लंड भी ले ले गी तो इससे कुछ नही होगा.” ज़ाहिद ने जवाबन कहा.
“कुतिया के बच्चे ये तेरी कंजड़ी माँ की चूत नही है जो तू इस तरह घस्से मार रहा है.” फूफी खादीजा के चेहरे पर तक़लीफ़ के आसार थे.
फूफी शहनाज़ ने कभी अपनी बड़ी बहन को इस तरह गालियाँ देते नही सुना था. उस वक़्त वो मेरे नीचे सीधी लेतीं हुई थीं और मेरा लंड उनकी चूत के अंदर बाहर हो रहा था. उन्होने हैरत से मेरी तरफ देखा और फिर खुद भी नीचे से अपने चूतड़ों के ज़ोर पर घस्से लगाने लगीं. शायद उन्हें भी फूफी खादीजा की गालियों ने भड़का दिया था.
ज़ाहिद फूफी खादीजा को चोदे जा रहा था. उस का लंड फूफी खादीजा की मोटी चूत के अंदर इस तरह जाता था के उस के लटके हुए टट्टे उनकी गांड़ के सुराख से लगते. उस का लंड बहुत मोटा था और फूफी खादीजा चंद ही घस्सों में बे-हाल हो गई थीं . लेकिन तक़लीफ़ के बावजूद वो बहुत एंजाय भी कर रही थीं . फिर ज़ाहिद ने उनकी टांगें नीचे कर दीं और उन्हे खोल कर उनकी फुद्दी लेता रहा. उस का लंड फूफी खादीजा की फुद्दी से बाहर आता तो फूफी खादीजा अपना हाथ नीचे करतीं और ज़ाहिद के टट्टों को पकड़ कर सहलाने लगतीं. "अफ फूफी खादीजा आप तो मुझे जल्दी डिसचार्ज कर दें गी. आप की बहन की चूत मारूं." ज़ाहिद उनकी चूत में घस्से मारता हुआ बोला.
“तेरी बहन की चूत में किसी कुत्ते का लंड डालूं ज़ाहिद. तेरी माँ को चोदुं कुत्ते……. उूउउफफफफफफ्फ़.” फूफी खादीजा उस के टट्टों से खेलते हुआ गालियाँ दिये जा रही थीं .
फूफी खादीजा ने मुझे चूत देते हुए कभी ये नही किया था. हाँ फूफी नीलोफर मेरे टट्टे ज़रूर पकड़ा करती थीं . मै समझ गया के फूफी खादीजा बड़ी खुल के चुद रही थीं . ज़ाहिद फिर सीधा लेट गया और फूफी खादीजा को अपने लंड पर बिठा कर चोदने लगा. उस ने उनके मम्मे हाथों में पकड़ लिये. फूफी खादीजा ने उस के लंड को हाथ से अपनी चूत में डाला और थोड़ा सा आगे झुक कर अपनी चूत को आहिस्ता आहिस्ता उस के लंड पर ऊपर नीचे करने लगीं. अब वो खुद ही ज़ाहिद के लंड से अपनी चूत चुदवा रही थीं .
में फूफी शहनाज़ की फुद्दी ले रहा था और उन्होने भी अब मेरा साथ देना शुरू कर दिया था.
“बता शहनाज़ तू खादीजा की तरह कुतिया है या नही?” मैंने फूफी शहनाज़ को गाली दी. वो अब समझ चुकी थीं के गालियाँ इस खेल का हिस्सा हैं.
“हाँ इस वक़्त तो में किसी कुतिया से भी ज़ियादा हूँ.” उन्होने जवाब दिया.
“हम दोनो कुतिया हैं तभी तो ये दो कुत्ते हमें चोद रहे हैं.” फूफी खादीजा ने ज़ाहिद के लंड पर छलांग लगाते हुए कहा. वो तो शायद गालियों के बगैर चूत दे ही नही सकती थीं .
मैंने फूफी शहनाज़ को कुतिया बना कर चारों हाथों पैरों पर कर के उनकी चूत पीछे से अपनी तरफ की और उस में लंड डाल कर उन्हे चोदने लगा. फूफी शहनाज़ ने दोनो हाथों में चूड़ियाँ पहन रखी थीं जो मेरे घस्सों से खनक रही थीं . फूफी खादीजा की तरह उनकी गांड़ भी बहुत मोटी और गोश्त से भारी हुई थी. घस्से मारने के दोरान में दोनो हाथों से उनके गोरे चूतरों को गूधता रहा जिन पर मेरी उंगलिओ के निशान पड़ जाते थे.
मैरा तजर्बा था के गांड़ का सुराख बहुत सी औरतों की कमज़ोरी होता है. मैंने अपनी उंगली पर थूक लगाया और फूफी शहनाज़ के ब्राउन छेद पर लगा दिया. उन्हे अच्छा लगा और वो ज़ोर ज़ोर से आगे पीछे हो कर मेरे लंड को अपनी चूत में लेने लगीं. वो बहुत देर से कोशिश कर रही थीं के उनके मुँह से ज़ियादा आवाजें ना निकने पा’आयायन लेकिन खलास होने के क़रीब उन्होने काफ़ी देर तक ऊऊहह….. ऊऊऊहह…… उउउफफफफफफ्फ़…..ऊऊऊहह की और फिर अपने चूतड़ों को अकड़ाती हुई खलास हो गईं. उनकी साँस फूल गई थी और चूत पानी से भर चुकी थी मगर मैंने उन्हे चोदना जारी रखा. वो दो तीन मिनिट सर नीचे किये चुदवाती रहीं और फिर एक दफ़ा और डिसचार्ज हो गईं. पाँच मिनिट में वो दो दफ़ा खलास हुई थीं .
ज़ाहिद ने फूफी खादीजा को करवट दिला के साइड से उनकी चूत में लंड डालने की कोशिश की मगर इस तरह चुदवाना उन्हे मुश्किल लगा जिस पर ज़ाहिद ने फिर उन्हे सीधा लिटाया और आगे से उनकी फुद्दी लेने लगा.
“उफफफ्फ़ ज़लील गांडू चीर दिया तुम ने मेरी चूत को. तुम्हारी माँ की चूत में खोते का लंड दूँ. उस की चूत बहुत खुली है मेरी तो छोटी सी है.” फूफी खादीजा चाची फ़हमीदा को गालियाँ दे रही थीं . फिर अचानक वो भी खलास हो गईं और होंठ दाँतों में दबा कर अपने अंदर गुस्से हुए ज़ाहिद के मोटे और लंबे लंड का मज़ा लेतीं रहीं.
"अमजद चलो फूपियाँ बदलते हैं. तुम अब फूफी खादीजा को चोदो और में फूफी शहनाज़ की फुद्दी लेता हूँ." ज़ाहिद ने अचानक कहा और फूफी खादीजा की चूत से लंड निकाल कर मेरी और फूफी शहनाज़ की तरफ बढ़ा. ऐसा लग रहा था जैसे कोई जिन अपने जिसम के बीच में एक लंबा सा डंडा लगाए चलता हुआ आ रहा हो.
मैंने भी फूफी शहनाज़ की गीली चूत से लंड निकाला और फूफी खादीजा के साथ लेट कर उनके मम्मे चूसने लगा. उन्होने मेरा लंड हाथ में पकड़ कर फॉरन छोड़ दिया क्योंके उस पर फूफी शहनाज़ की चूत का पानी लगा हुआ था. लेकिन कुछ देर बाद फूफी खादीजा ने दोबारा मेरा लंड हाथ में ले लिया. दूसरी तरफ ज़ाहिद ने फूफी शहनाज़ को खूब छूने चाटने के बाद अपने लंड पर बिठा लिया. उस ने उनके चूतड़ पकड़ कर अपना मोटा लंड पूरा उनकी चूत के अंदर किया और घस्से रोक दिये. अब उस का लंड फूफी शहनाज़ के अंदर ही था. फूफी शहनाज़ की चूत में बहुत दर्द हो रहा था और वो तक़लीफ़ से दोहरी हुई जा रही थीं .
मैंने फूफी खादीजा की टांगें खोल कर उनकी गोरी चूत में लंड घुसा दिया. उन्होने अपने गोरे गोरे बाज़ो मेरे गले में डाल दिये और चूतर हिला हिला कर मेरे घस्सों का भरपूर जवाब देने लगीं. मुझे लगा के वो मुझ से ज़ियादा आराम से चुदवा रही थीं . शायद इस की वजह ये थी के में उन्हे पहले से चोद रहा था जबके ज़ाहिद की आज पहली बार थी. खैर में उनकी फुद्दी के बिल्कुल दरमियाँ में घस्से मारता रहा. ये उनका वीक पॉइंट था. उनके मुँह से थूक उररने लगा और वो एक दफ़ा फिर डिसचार्ज हो गईं.
ज़ाहिद भी डिसचार्ज होने वाला था. "अमजद फूफी खादीजा के अंदर में डिसचार्ज हूँ गा." उस ने फूली हुई साँस के साथ कहा और फूफी शहनाज़ में से अपना लंड निकाल लिया. फूफी शहनाज़ की जान में जान आ’ई.
फिर उस ने पीछे से फूफी खादीजा की चूत में लंड डाला और उन्हे चोदने लगा. मै आ कर फूफी शहनाज़ की टाँगों के बीच में बैठ गया और उनकी फुद्दी में एक दफ़ा फिर लंड डाल दिया. उनकी फुद्दी अब फिर खुश्क थी और लंड लेते हुए उन्हे तक़लीफ़ हो रही थी. मैंने सात आठ घस्से लगए तो उनकी फुद्दी ने पानी छोड़ दिया और में आराम से उन्हे चोदने लगा. अब थोड़ी ही देर रह गई थी और में और ज़ाहिद दोनो डिसचार्ज होने वाले थे.
ज़ाहिद ने फूफी खादीजा की चूत लेते लेते ज़ोर की आवाज़ निकाली और उनकी चूत के अंदर खलास हो गया. उस ने अपनी मनी से उनकी चूत को भर दिया. "ज़ाहिद किया करते हो ये होटेल है बाहर आवाज़ चली जाए गी." मैंने फूफी शहनाज़ की फुद्दी में घस्से मारते मारते कहा. वो हंस पड़ा.
ज़ाहिद फूफी खादीजा को चोद कर अब साइड पर हो गया और बेड पर लेटा रहा. उस का लंड फूफी खादीजा की चूत के पानी में नहाया हुआ था और अब बैठ चुका था. मै भी अब फूफी शहनाज़ की चूत में डिसचार्ज होने वाला था. फूफी शहनाज़ को अंदाज़ा हो गया के में खलास होने वाला हूँ और वो गांड़ उठा कर मेरा लंड लानी लगीं. फिर कुछ देर बाद में और फूफी शहनाज़ एक साथ ही डिसचार्ज हुए और मैंने अपनी मनी उनकी फुद्दी के अंदर छोड़ दी. वो मुझ से लिपटी कांपती रहीं. उनकी आँखों से लग रहा था के उन्होने आज बहुत मज़े किये थे. यों हम ने अपनी दोनो फुफियों को चोद लिया.
चुदाई का अगला सेशन अब अगले दिन होना था.
अपनी दोनो फुफियों को चोदने के तक़रीबन दो घंटे बाद हम फिर बैठ गए और बातें शुरू हो गईं. फूफी शहनाज़ हमें अपनी चूत देने के बाद अब परेशां नज़र नही आ रही थीं .
"ज़ाहिद यार चाची फ़हमीदा भी यहाँ होतीं तो मज़ा आ जाता." मैंने कहा क्योंके मुझे याद था के फूफी खादीजा को चोदने के बदले में उस ने चाची फ़हमीदा को मुझ से चुदवाने का वादा किया था. फिर फूफी खादीजा भी यही चाहती थीं .
“हाँ ये ठीक है ज़ाहिद फोन करो उससे और बुला लो." फूफी खादीजा ने ज़ाहिद से कहा.
"फ़हमीदा यहीं आ जायेगी तो बहुत बेहतर रहे गा घर पर कोई प्राब्लम ही ना बन जाए." फूफी शहनाज़ ने भी उनकी हाँ में हाँ मिलाई.
में अपनी दोनो फुफियों की ग़मे समझ रहा था. वो चाहती थीं के चाची फ़हमीदा को नतियागली बुलवा कर चुदवाते हुए देखें और उनकी पोज़िशन खराब हो. वो शायद ये समझती थीं के में और ज़ाहिद चाची फ़हमीदा को चोदेंगे और वो तमाशा देखें गी. लेकिन ज़ाहिर है के चाची फ़हमीदा के साथ उन्हे भी चूत देनी थी और ऐसी सूरत में हिसब बराबर हो जाता और किसी की पोज़िशन भी खराब ना होती.
कुछ देर की बहस के बाद हम सब ने यही फ़ैसला किया के ज़ाहिद अपनी माँ को फोन कर के बुला ले जो पिंडी से कोच पर हसनबदल तक आ जाएं और ज़ाहिद कार पर जा कर उन्हे हसनबदल से नतियागली ले आइ. ज़ाहिद रात ही को कार ले कर निकल गया और हम तीनो सोने के लिये लेट गए.
सुबा कोई 11 बजे ज़ाहिद और चाची फ़हमीदा होटेल पुहँच गए. चाची फ़हमीदा की उमर भी 40 से ऊपर ही थी. वो बड़ी तेज़ थर्रार औरत समझी जाती थीं और दोनो फुफियों से कई बार उनका झगड़ा हो चुका था. इसी लिए वो दोनो खाहिसमंद थीं के चाची फ़हमीदा को किसी तरह नीचा दिखा सकैं. वो लंबे क़द की बड़े भारी बदन वाली औरत थीं . उनको मोटा तो हरगिज़ नही कहा जा सकता था क्योंके उनके जिसम का सारा चर्बी उनके चूतड़ों और मम्मों में थी. शादी शुदा औरतों की तरह उनका जिसम गोश्त से भरा हुआ था और थोड़ा सा पेट भी निकला हुआ था. लेकिन लंबे क़द की वजह से मम्मे और गांड़ और भी बड़े लगते थे. उनका रंग सांवला और नाक नक़्शा बस वजबी सा ही था. मेरी दोनो फुफियों के मुक़ाबले में वो बिल्कुल भी खूबसूरत नही थीं मगर जिस्मानी तौर पर बड़ी ज़बरदस्त थीं .
चाची फ़हमीदा के जिसम का सब से शानदार हिस्सा उनके चूतड़ थे जो 48 इंच मोटे तो ज़रूर हूँ गे. उनके चूतड़ बिल्कुल गोल और बहुत ज़ियादा बाहर निकले हुए थे. आज से दस साल पहले भी उनकी गांड़ बहुत मोटी हुआ करती थी मगर वक़्त के साथ साथ उनके चूतर और भी बड़े और भारी हो गए थे. पता नही कब से मेरा दिल कर रहा था के में चाची फ़हमीदा के चूतरों में लंड डाल कर घस्से मारूं और उनके छेद में अपनी मनी छोडूं. आज वो दिन आ ही गया था. वो खानदान की सब से पहली औरत थीं जिस की मोटी गांड़ देख कर में इन्सेस्ट की तरफ मा’आइल हुआ था. चाची फ़हमीदा के मम्मे भी उनकी गांड़ की तरह ही इंतिहा मोटे थे. वो ब्रा के बावजूद अपने मम्मे संभाल नही सकती थीं और और हमेशा क़मीज़ के ऊपर से भी ऐसा लगता जैसे अभी उनके मम्मे ब्रा से बाहर आ जायेंगे. ब्रा कभी भी उनके मम्मों को टाइट नही रख सका और जहाँ तक मेरी यादाश्त काम करती थी वो जब भी चलती फिरतीं तो उनके मम्मे हिलते रहते थे.
चाची फ़हमीदा के आने के बाद अब खेल दोबारा शुरू होना था. ज़ाहिद ने उनको बता दिया था के उस ने दोनो फुफियों को चोद लिया है और ये के उन्हे भी मालूम हो चुका है के चाची फ़हमीदा ज़ाहिद से चूत मरवा रही हैं. इस लिये वो होटेल में आने के बाद बिल्कुल नॉर्मल रहीं और फुफियों से बड़े आराम से मिलीं. लेकिन में जानता था के जब ये तीन जनानियाँ कहीं जमा हो जाएं तो कोई ना कोई मसला ज़रूर होता है. पहले तो सूरत-एहाल ठीक रही लेकिन फिर चाची फ़हमीदा बातों बातों में कहा:
"बाजी खादीजा आज तो इन लड़कों की मोज हो गई है दो दो फूपियाँ मिल गईं मज़े लेने के लिये."
में उनकी बेबाकी पर हैरान नही हुआ क्योंके वो थीं ही बहुत मुँह-फॅट और तेज़ मिज़ाज की.
"फ़हमीदा हम तो देखना चाहते हैं के ज़ाहिद तुम्हे कैसे चोदता है." फूफी खादीजा ने फॉरन जवाब दिया.
“फ़हमीदा जब बेटा अपनी माँ को चोदता है तो कैसा लगता है? तुन्हे तो पता होना चाहिये क्योंके ज़ाहिद तुम्हे चोद रहा है.” फूफी शहनाज़ ने भी उन पर वार किया. उनके मुँह से ऐसी बातें सुन कर मुझे ज़रूर हैरत हुई. वो फूफी खादीजा और फूफी नीलोफर के मुक़ाबले में ज़रा ठंडे मिज़ाज की थीं .
“बाजी शहनाज़ आप का बेटा अभी छोटा है जब बड़ा हो गा तो आप की चूत ज़रूर मारे गा. तब आप को पता चले गा के बेटा माँ को कैसे चोदता है.” चाची फ़हमीदा ने मुस्कुरा कर जवाब दिया.
“फ़हमीदा मेरा बेटा मेरी चूत मारे या ना मारे लेकिन तुम्हारा बेटा तो शायद रोज़ ही तुम्हारी फुद्दी का क़ीमा बनाता है.” फूफी शहनाज़ कहाँ छोड़ने वाली थीं .
"बाजी इस में किया है ये मेरा बेटा है इस का लौड़ा भी मैंने ही सब से पहले अपनी फुद्दी में ले कर इस की ज़रूरत पूरी की है. आप भी तो दो दो भतीजों से चुदवा रही हैं. ज़ाहिद ने कल ही तो आप की चूत ली है और आप जानती ही हैं के वो कितने अच्छे तरीक़े से चोदता है." चाची फ़हमीदा ने तुर्की बा तुर्की जवाब दिया.
दोनो फुफियों ने इस दफ़ा उन्हे कोई जवाब नही दिया.
इस से पहले के बात बढ़ जाती और रंग में भंग पड़ जाती मैंने जा कर चाची फ़हमीदा का एक मम्मा हाथ में ले लिया और उससे मसलने लगा. उनके बदन को मैंने इस से पहले कभी हाथ नही लगाया था. उनका मम्मा बहुत भारी लेकिन नरम था और मैंने सोचा के उन्हे चोदने में भी बड़ा मज़ा आए गा. चाची फ़हमीदा फॉरन ही गरम होने लगीं. मैंने कभी किसी औरत को इतनी जल्दी गरम होते नही देखा था.
मुझे अपनी माँ के मम्मे को पकड़ता देख कर ज़ाहिद भी उठा और फूफी खादीजा और फूप शहनाज़ के दरमियाँ बैठ गया जो बेड पे साथ साथ बैठी हुई थीं . उसने फूफी शहनाज़ का मुँह चूमना शुरू कर दिया.
चाची फ़हमीदा ने किसी शरम का इज़हार किये बगैर मेरा लंड पकड़ लिया और उस पर हाथ फेरने लगीं जैसे उस की मोटाई और लंबाई चेक कर रही हूँ. मैंने जल्दी जल्दी अपने कपड़े उतार दिये और उन्हे ले कर ज़मीन पर बिछी हुई मॅट्रेस पे आ गया. ज़ाहिद भी नंगा हो गया और बेड पर पड़ी हुई मॅट्रेस ज़मीन वाली मॅट्रेस के साथ मिला कर डाल दी और दोनो फुफियों को ले कर मेरे और चाची फ़हमीदा के पास ही आ गया. तीन ज़बरदस्त औरतों को एक साथ इस तरह चोदने का मेरा पहला मोक़ा था और ये सोच कर मेरे लंड में खून तेज़ी से दाखिल होने लगा और वो लोहा बन गया.
में चाची फ़हमीदा को नंगा करने लगा और ज़ाहिद फूफी खादीजा और फूफी शहनाज़ के कपड़े उतारने लगा. जल्द ही तीनो के जिसम पर सिर्फ़ ब्रा ही रह गए.
चाची फ़हमीदा का ब्रा मैंने खोल कर उतार दिया और वो बिल्कुल नंगी हो गईं. उनके मोटे मम्मों को मैंने हाथों में ले लिया और उनका लांस महसूस करने लगा. फूफी खादीजा और फूप शहनाज़ के मम्मों के साथ अगर चाची फ़हमीदा के मम्मों का मुआयना किया जाए तो चाची फ़हमीदा के निपल्स और उनके इर्द गिर्द का एरिया ज़रा ज़ियादा डार्क था और इस की वजह शायद उनका सांवला रंग था. निपल्स के क़रीब वाले ब्राउन हिस्से में छोटे छोटे दाने से थे जिन को उंगली लगाओ तो वो उभरे हुए महसूस होते थे. उनके मम्मों के निप्पल मेरी दोनो फुफियों के मुक़ाबले में थोड़े छोटे थे लेकिन मम्मों का साइज़ तक़रीबन उतना ही था. चाची फ़हमीदा के मम्मे बहुत भारी भी थे और मेरे हाथों में पूरे नही आ रहे थे. जब में उनके मम्मों से खेल रहा था तो चाची फ़हमीदा के होठों पर मुस्कुराहट थी.
में चाची फ़हमीदा के चूतड़ों का आशिक़ था इस लिये मैंने उन्हे उल्टा लिटा दिया और उनके चौड़े और चूतड़ अपनी तमाम हशर’समानी के साथ मेरे सामने आ गए. मैंने अपनी ज़िंदगी में किसी औरत के इतने बड़े चूतर नही देखे थे. अगरचे फूफी खादीजा और फूफी शहनाज़ की गांड़ भी दरमियानी उमर की औरतों की तरह बड़ी मोटी और बहुत भारी थी मगर चाची फ़हमीदा तो इस मामले में कमाल ही थीं . मैंने उनके उभरे हुए चूतरों पर अच्छी तरह हाथ फेरने के बाद उनको दोनो हाथों से खोला और उनके छेद के ऊपर ज़बान फेरने लगा. उनके चूतड़ों पर इतना गोश्त था के उनका गांड का सुराख आसानी से नही चाटा जा सकता था इस लिये मैंने उन्हे चारों हाथों पैरों पर कर दिया जिस की वजह से उनकी गांड़ का सुराख मेरे सामने आ गया और मैंने भूकों की तरह उससे चूमना और चाटना शुरू कर दिया.
चाची फ़हमीदा की गांड़ का गांड का सुराख भी अच्छे ख़ासे बड़े साइज़ का था. मैंने उनके छेद को चाट चाट कर गीला कर दिया. जब में अपनी ज़बान उनकी गांड़ के सुराख के बीच में डाल कर उससे सुराख के अंदर करने की कोशिश करता तो वो अपने छेद के मसल्स को कभी टाइट कर लातीं और कभी ढीला छोड़ देतीं. ये हरकत फूपियाँ भी किया करती थीं . चाची फ़हमीदा के छेद का इस तरह खुलना और बंद होना मुझे ज़ियादा अच्छा लग रहा था क्योंके उनका गांड का सुराख साइज़ में काफ़ी बड़ा था और उस की हरकत छोटे मॉरॉन वाली औरतों के मुक़ाबले में वाज़ेह नज़र आ जाती थी.
काफ़ी देर तक में उनकी गांड़ चाट ता रहा और फिर उन्हे सीधा कर के मैंने उनके मम्मे चूसने शुरू कर दिये. चाची फ़हमीदा बहुत गरम औरत थीं और अपनी गांड़ चटवा कर वो अब मेरा लंड लेने के लिये पागल हो रही थीं . जब में उनके निपल्स चूस रहा था तो उन्होने हाथ बढ़ा कर मेरा लंड मुट्ठी में ले लिया और उस पर हाथ फेरने लगीं. मैंने आगे हो कर अपना लंड उनके मुँह में दे दिया और वो उससे चूसने लगीं.
चाची फ़हमीदा लंड चूसना बहुत अच्छी तरह जानती थीं . उन्होने मेरे लंड के टोपे को बड़ी महारत से चाटा और चूसा. मै अपना लंड अपनी फुफियों और मामी शाहिदा से भी चुस्वाता रहा था मगर चाची फ़हमीदा इस काम में बहुत एक्सपर्ट थीं . मुझे बड़ा लुत्फ़ आ रहा था.
उधर ज़ाहिद फूफी शहनाज़ को अपना लंड चुस्वा रहा था और फूफी खादीजा को खड़ा कर के उनके मम्मे मुँह में लिये हुए थे. एक हाथ की बड़ी उंगली उस ने फूफी खादीजा की चूत के अंदर की हुई थी जो खूब गरम हो चुकी थीं . फूफी खादीजा से शायद रहा नही गया और उन्होने फूफी शहनाज़ के हाथ से ज़ाहिद का लंड ले लिया और खुद उससे चूसने लगीं.
अजीब मंज़र था के किसी ब्लू फिल्म की तरह दो औरतें ज़ाहिद का लंड बारी बारी चूस रही थीं मगर जज़्बात को ज़ियादा उभारने वाली बात ये थी के ये दोनो औरतें हमारी फूपियाँ और आपस में सग़ी बहनें थीं . तीसरी औरत उनकी भाभी थी. ये सब इन्सेस्ट के मज़े थे. इस से ज़ियादा सेक्स का मज़ा लिया ही नही जा सकता था.
फिर ज़ाहिद ने मॅट्रेस पर लेट कर फूफी खादीजा को अपने थूक से गीले लंड के ऊपर सवार कर लिया. उन्होने उस का लंड हाथ में पकड़ा और आहिस्ता से उस का मोटा और फूला हुआ टोपा अपनी चूत के अंदर डाल लिया. जैसे ही ज़ाहिद का लंड उनकी चूत के अंदर गया दोनो के मुँह से आवाजें निकलीं. फिर फूफी खादीजा उस के लंड पर अपने सफ़ेद चूतरों को ऊपर नीचे करने लगीं. ज़ाहिद ने फूफी खादीजा को चोदने के साथ साथ फूफी शहनाज़ को अपने मुँह के क़रीब कर लिया और उनके होंठ ज़ोर ज़ोर से चूमने लगा. फूफी शहनाज़ के भारी मम्मे हिलते रहे. वो ज़ाहिद के सीने पर हाथ फेरती रहीं. कल के मुक़ाबले में इस वक़्त वो एक बिल्कुल मुख्तलीफ़ औरत नज़र आ रही थीं . उन्होने फिर अपना सर ज़ाहिद के सीने पर रख दिया और नीचे से उस का लंड फूफी खादीजा की फुद्दी में आता जाता देखती रहीं.
“बाजी शहनाज़ आप क्यों ऐसे बे-कार बैठी हैं. उठाईं और बाजी खादीजा के मम्मे चूसें.” चाची फ़हमीदा ने कहा जो मेरा लंड चूसते हुए अपनी दोनो नंदों को अपने बेटे से चूत मरवाते हुए देख रही थीं .
पहले तो फूफी शहनाज़ ने कोई हरकत नही की लेकिन फिर यकायक वो उठीं और ज़ाहिद के लंड पर बैठी हुई फूफी खादीजा के मम्मों को हाथों में पकड़ पकड़ कर दबाने लगीं. फूफी खादीजा पहले तो हैरान हुईं लेकिन फिर उन्होने फूफी शहनाज़ को खुद से क़रीब कर लिया और उनके होंठ चूमने लगीं. ये पहली दफ़ा थी के दोनो बहनो ने एक साथ चुदवाते हुए एक दूसरे के जिस्मों को अपनी मर्ज़ी से हाथ लगाया किया था. फूफी खादीजा ज़ाहिद के लंड को उछल उछल कर अपनी फुद्दी में ले रही थीं और फूफी शेनाज़ को चूमते हुए बार बार उनका मुँह ऊपर नीचे हो रहा था. ज़ाहिद बहुत हरामी था. उस ने फूफी खादीजा का हाथ पकर कर फूफी शहनाज़ की चूत के ऊपर रख दिया और फूफी खादीजा उनकी चूत पर हाथ फेरने लगीं. पीछे से ज़ाहिद फूफी शहनाज़ के चूतड़ों को मसल रहा था. उनका बुरा हाल था.
कुछ मिनिट बाद फूफी खादीजा ज़ाहिद के लंड से उतर गईं और फूफी शहनाज़ ने उसके लंड को अपनी गीली चूत में ले लिया. ज़ाहिद ने फूफी खादीजा से कहा के वो उस के टट्टे पकड़ें. फूफी खादीजा फूफी शहनाज़ के पीछे आ गईं और ज़ाहिद के मोटे लंड पर जो फूफी शहनाज़ की चूत के अंदर घुसा हुआ था उंगलियाँ फेरने लगीं. उन्होने ज़ाहिद के टट्टे हाथ में ले लिये और उन्हे आहिस्ता आहिस्ता मसलने लगीं. ज़ाहिद की ताक़तवर रानों में जैसे बिजलियाँ भर गईं और वो ऊपर हो हो कर फूफी शहनाज़ की चूत में घस्से मारने लगा.
मुझे यक़ीन हो गया के फूफी खादीजा की ये सारी हरकत गैर-इरादि नही थीं बल्के उन्होने ये सब कुछ ब्लू फिल्म्स में होता ज़रूर देखा था और मोक़ा मिलने पर खुद भी ऐसा ही कर रही थीं . एक ऐसी घरैलू औरत जो बीस साल से शादी शुदा थी किस लिये और क्यों ब्लू फिल्म्स देखती थी एक ऐसा सवाल था जिस का जवाब इस सोसाइटी की गलत जिन्सी रसम-ओ-रिवाज में छुपा हुआ है जिन के मुताबिक़ औरत की जिस्मानी ज़रूरत पूरी करने का कोई सिस्टम है ही नही. इंसानो से किसी भी किसम की तवक़ो की जा सकती है. कोई भी वो नही होता जो नज़र आता है.
चाची फ़हमीदा ने जब मेरा लंड चूस चूस कर अच्छी तरह अपने थूकों से भर दिया तो मैंने उन्हे मॅट्रेस पर लंबा लंबा लिटा दिया और उनकी चूत के अंदर लंड डाल कर घस्से मारने लगा. दो मिनिट में ही मुझे अंदाज़ा हो गया के फूफी खादीजा और फूफी शहनाज़ के मुक़ाबले में चाची फ़हमीदा चूत मरवाने में कहीं ज़ियादा तजर्बा-कार थीं और ज़ियादा जज़्बे के साथ मेरे घस्सों का जवाब दे रही थीं . उनके भारी चूतड़ और मोटी मोटी रानें बहुत तवाना और मज़बूत थे जिन की वजह से वो मेरे नीचे होने के बावजूद बड़े ज़ोरदार घस्से मार रही थीं . मेरी कंधों को उन्हे ने कस कर पकड़ रखा था. जब में उनकी फुद्दी में अपना लंड घुसाता तो फुद्दी के अंदर पानी होने की वजह से अजीब सी आवाज़ निकलती. चाची फ़हमीदा अपने चूतड़ हिला कर मेरा लंड अपनी फुद्दी के अंदर ले रही थीं . जब मेरा लंड उनकी फुद्दी में जाता तो ऐसा लगता जैसे उनकी फुद्दी उससे मज़ीद अंदर की तरफ खैंच रही हो. इस से मेरे लंड पर दबाव पड़ता और मुझे बहुत अच्छा लगता.
खानदानी हिज़ाबी औरतें
मैंने चाची फ़हमीदा के साँवले सलोने गालों और लाल होठों के बोसे लेने शुरू कर दिये और इसी तरह उन्हे चोदता रहा. उन्हे भी मज़ा आ रहा था क्योंके वो तवातूर के साथ ऊऊऊओ अयाया किये जा रही थीं . उनका चेहरा जज़्बात से लाल हो रहा था. मै फिर लेट गया और चाची फ़हमीदा को अपने लंड पर ले आया. उनके चूतर चूँके कुछ ज़ियादा ही मोटे थे इस लिये इतने वज़न के साथ मुझे अपने लंड को उनकी चूत के अंदर ले जाते हुए मुश्किल हो रही थी. चाची फ़हमीदा मेरी मुश्किल को भाँप गईं और उन्होने अपना वज़न टाँगों पर डाल कर अपना बदन ऊपर उठाया और मुझे मोक़ा दिया के में उनकी चूत में खुल कर घस्से मार सकूँ. मैंने उन्हे मज़े ले ले कर चोदना शुरू कर दिया और वो भी चूत देते हुए एंजाय करने लगीं. उनके भारी मम्मे मेरे सामने ज़ोर ज़ोर से हिल रहे थे जिन्हे मैंने हाथों में लिया हुआ था.
इस तरह चुदवाते हुए वो भी जल्द ही थक गईं और मैंने उन्हे चारों हाथों पैरों पर किया और उनकी मोटे चूतरों के बीच में छुपी हुई चूत के अंदर अपना लंड डाल कर घस्से मारने लगा. कुछ देर बाद चाची फ़हमीदा पहली बार खलास हो गईं. इस मामले में भी वो फूफी खादीजा और फूफी शहनाज़ से मुख्तलीफ़ थीं क्योंके वो दोनो इतनी देर चुदवाने के दोरान दो तीन दफ़ा खलास हो जाती थीं . चाची फ़हमीदा जब खलास हुईं तो उनकी चूत में से बहुत पानी खारिज हुआ और मेरे लंड पर लग गया. मैंने उनके अंदर से अपना लंड निकाल लिया और ज़ाहिद और फुफियों की तरफ देखा.
ज़ाहिद ने अब फूफी शहनाज़ को नीचे लिटा कर उनकी चूत में लंड डाला हुआ था और ज़ोरदार घस्से मार रहा था. फूफी शहनाज़ की हालत से लगता था के वो अब तक कई दफ़ा डिसचार्ज हो चुकी थीं . ज़ाहिद ने उनकी चूत से अपना लंड बाहर निकाल लिया. वो करवट ले कर साइड पर हो गईं. ज़ाहिद ने फॉरन ही साथ लेतीं हुई फूफी खादीजा की टाँगें अपने कंधों पर रख कर उनकी चूत में बड़ी बे-रहमी से अपना लंड घुसेड़ दिया. फूफी खादीजा की टांगें ज़ाहिद के भारी जिसम के वज़न से मुड़ कर उनके मम्मों से जा लगीं और वो बड़ी तक़लीफ़ से आँखें बंद कर के उससे अपनी चूत देने लगीं. ज़ाहिद का मोटा लंड नीचे से फूफी खादीजा की चूत के काले बालों के अंदर जाता नज़र आ रहा था और जब वो चूत में दाखिल होता तो चूत जैसे फैल जाती और लंड को अपने अंदर उतार लेतीं. फूफी खादीजा बड़ी लहीन शाहीन औरत थीं मगर ज़ाहिद उन्हे अपने नीचे बे-बस कर के चोद रहा था.
फूफी खादीजा के सर का पिछला हिस्सा मॅट्रेस के अंदर धंसा हुआ था और वो अपनी गर्दन थोड़ी सी उठा कर अपने मम्मों पर ज़ाहिद का हाथ देखते हुए अपनी चूत में उस का लंड ले रही थीं . फिर अचानक उन्होने मुँह से ज़ोर की उूउउफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ हहााआ आआआ जैसी आवाजें निकालनी शुरू कर दीं और बुरी तरह कपकापाते हुए खलास हो गईं. उनके आँखें बंद हो गईं और उन्होने अपने हाथों से ज़ाहिद के घस्से रोकने की कोशिश की. लेकिन ज़ाहिद ने उनके मम्मों को सख्ती से पकडे रखा और इसी तरह उनकी चूत में अपने जिसम के पूरे वज़न के साथ घस्से मारता रहा. आख़िर जब उस ने देखा के फूफी खादीजा से अब बर्दाश्त नही हो रहा तो वो उनके ऊपर से उठ गया.
यहाँ से वो अपनी माँ यानी चाची फ़हमीदा के पास आया और उनकी टाँगों के बीच में बैठ कर उनकी चूत में लंड डाल दिया. अब वो अपनी माँ का मुँह चूमते हुए उस की चूत में ज़ोरदार घस्से लगा रहा था और अपने दोनो हाथ उस के मोटे चूतरों के नीचे रख कर चूतरों को पकड़ रखा था. चाची फ़हमीदा हिल हिल कर अपने बेटे के लंड को अपने अंदर ले रही थीं और उसकी ज़बान चूस रही थीं . मै और दोनो फूपियाँ ये मंज़र देख रहे थे.
ज़ाहिद अपनी माँ को चोदता रहा और में एक दफ़ा फिर फूफी शहनाज़ की तरफ मुतवजा हुआ. मैंने उन्हे अपने लंड पर सवार कराया और उनकी फुद्दी लेने लगा. फूफी खादीजा ज़ाहिद से चुदवा कर काफ़ी थक गई थीं और अब मॅट्रेस पर बे-सुध पड़ी थीं . मैंने फूफी शहनाज़ को चोदते चोदते हाथ बरहा कर फूफी खादीजा के मम्मों को मसलना शुरू कर दिया. पहले तो उन्होने कोई रेस्पॉन्स नही दिया लेकिन फिर मेरे क़रीब आ गईं और मेरा मुँह चूमने लगीं. मेरे लंड के ऊपर बैठे बैठे फूफी शहनाज़ फिर डिसचार्ज हो गईं और मेरे और फूफी खादीजा के ऊपर गिर गईं.
मैंने उन्हे अपने लंड से उतारा और फूफी खादीजा को उल्टा लिटा कर पीछे से उनकी चूत में लंड डालने की कोशिश की. लेकिन इस पोज़िशन में चूत अंदर की तरफ हो जाती है और मुझे उसके अंदर लंड घुसाना मुश्किल हो रहा था. फूफी खादीजा ने अपने मोटे चूतर थोड़े से ऊपर उठाये और इस तरह उनकी चूत मेरे सामने आ गई. मैंने फॉरन लंड उनकी चूत के अंदर डाल दिया और घस्से मारने लगा. मै पीछे से उनकी कमर के गोश्त को चूमता रहा और घस्से भी लगाता रहा. मैंने फूफी शहनाज़ से कहा के नीचे हाथ डाल कर मेरे टट्टों को सहलाती रहें. उन्होने ऐसा ही किया. उनका हाथ जैसे ही मेरे टट्टों पर लगा मेरे लिये मज़ीद घस्से मरने ना-मुमकिन हो गए और में फूफी खादीजा के चूतरों को पकड़ते हुए उनकी मोटी चूत में डिसचार्ज हो गया.
ज़ाहिद और चाची फ़हमीदा अभी तक एक दूसरे से चिमटे हुए थे और ज़ाहिद अपनी माँ की फुद्दी चोद रहा था. मैंने दिल ही दिल में ज़ाहिद को दाद दी क्योंके में तो औरतों को चोदने में काफ़ी तजर्बा रखता था और इतनी जल्दी डिसचार्ज नही होता था मगर वो भी इस मामले में कम साबित नही हुआ था और आज उस ने तीन औरतों को बड़े आराम से चोदा था. लगता था के अपनी माँ के अलावा भी ज़ाहिद ने दूसरी औरतों को चोदा था. बहरहाल थोड़ी ही देर बाद ज़ाहिद के घस्सों में तेज़ी आ गई और वो चाची फ़हमीदा की फुद्दी के अंदर छूट गया.उस ने अपना लंड उनकी फुद्दी से निकाला तो मैंने देखा के उस की मनी चाची फ़हमीदा की फुद्दी से बह कर बाहर निकल रही थी. फिर हम चारों मॅट्रेसस पर ही लेट गए ताके अपनी साँसें दरुस्त कर सकैं.
उस दिन अबोटाबाद से निकलने के बाद सब लोग मेरे घर आ गए. यहाँ पर हम ने एक प्रोग्राम और करना था. चाची फ़हमीदा और फुफियों में छोटी छोटी झड़पें अब भी हो रही थीं . फूफी शहनाज़ ने घर जाना चाहा मगर फूफी खादीजा ने उन्हे रोक लिया. अगले दिन डैड ऑफीस चले गए तो घर खाली हो गया. फूफी खादीजा ने हमारी नौकरानी को जल्दी छुट्टी दे दी और यों हम कुछ और मज़े करने को तय्यार हो गए. हुमरे पास शाम सात बजे तक का वक़्त था क्योंके फिर डैड घर आ जाते थे. में,दोनो फुफियों, चाची फ़हमीदा और ज़ाहिद को अपने कमरे में ले आया.
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